Origin of Kayasth

कायस्थ की उत्पत्ति

श्री चित्रगुप्त जी एवं उनकी संतति आदि का संक्षिप्त विवरण
श्री सच्चिदानंद लाल दास अध्यक्ष - कर्ण कायस्थ कल्याण परिषद् , बोकारो स्टील सिटी शाखा निवास ग्राम जयदेव पट्टी (दरभंगा मंडल के अंतर्गत) द्वारा लिखित पुस्तक "कायस्थ कौन ?" के प्रकाशन २४-०७-२००२  का प्रतिलिपि :-
   यह सर्वविदित है की कायस्थ श्री श्री १०८ श्री चित्रगुप्त जी की संतान है| श्री चित्रगुप्त जी के सम्बन्ध में उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर चार वर्ण :- ब्राह्मण, क्षत्रिय , वैश्य तथा शुद्र एवं अन्य चराचर की रचना के पश्चात सभी के कर्म का लेखा जोखा करने की खोज के लिए ब्रह्मा ध्यान मग्न हुए । ग्यारह हजार वर्षकी तपश्या करने के बाद उनकी काया से श्री चित्रगुप्त भगवन का आविर्भाव हुआ और वे ब्रह्मा जी की आज्ञा से यम के सहायक बने ।

उपर्युक्त बात का प्रमाण भविष्य पुराण, गरुड़ पुराण,स्कन्द पुराण, देवी पुराण, कमलाकर भट्ट रचित वृहत्ब्रह्मखंड, श्री हर्षरचित नैश्धिया चरित आदि हैं ।
     श्री चित्रगुप्त जी की स्तुति में :-
           "श्रिया सह समुत्पन्ना समुद्रमथनोदभव।
            चित्रगुप्त महाबाहो ममाद्य वरदो भव ।।"

(हे लक्ष्मी के साथ उत्पन्न होनेवाले , हे समुद्र मंथन से उत्पन्न होनेवाले तथा बड़ी भुजावाले चित्रगुप्तजी आज मुझे वरदान देनेवाले होइए ।) भी कहा गया है ।

भविष्यपुराण , पदमपुराण आदि के अनुसार चित्रगुप्त जी को जब ब्राह्मण देव मानकर पूजते थे , तब धर्मशार्मा ने अपनी कन्या से उनका पाणिग्रहण करने के लिए ब्रह्मा जी से निवेदन किया ।
उसी प्रकार सूर्य के पुत्र मनु (श्राध्देव) ने  भी अपनी कन्या सुदाक्षिना के साथ चित्रगुप्त जी का विवाह करने का आग्रह किया । ब्रह्मा जी ने दोनों की प्रार्थना स्वीकार कर लिया ।

इस प्रकार ऋषि धर्मशर्मा  की पुत्री इरावती को आठ पुत्र हुए तथा श्राध्देव की पुत्री सुदाक्षिना से चार पुत्रों का जन्म हुआ ।


कायस्थ वंशावली  :- कुल बारह पुत्रों की शाखाएं इस प्रकार हैं 

कुछ विद्वानों के अनुसार विर्यभानू (वाल्मीकि ) और विश्वभाणु (अष्ठाना ) इरावती माता के पुत्र तथा चित्र चारू (निगम ) और अतीन्द्रिय (कुलश्रेष्ठ) नंदिनी माता के पुत्र मान्य है इसका एक मात्र प्रणाम कुछ घरो में विराजित श्री चित्रगुप्त जी का चित्र है ।

1.       चारू (माथुर) की तीन श्रेणियां (शाखाएं) (क) देहलवी (ख) कच्छी तथा (ग) खचौली उनके निवास के कारण हैं

2.       सुचारू ( गौड़) की चार  श्रेणियां है जैसा की उपर्युक्त है

3.       चित्र (भटनागर) की दो श्रेणिया है (क) भटनागर कदीम अर्थात पुराना (व्यास ) | (ख) गौड़ कायस्थ से मिलने वाले भटनागर (दास)|

4. मतिमान (सक्सेना) की दो श्रेणियां है (क) खर  और (ख) दुसर

ऐसा कहा जाता है की अकबर क पिता हुमायूँ जब इरान गए तब उनके साथ कुछ शकसेन  भी गए । वहां वे सोलह वर्ष तक रहे । वहां से लौटने के बाद श्क्सें और उनके वंशधर दुसर अथवा हेय समझे गए ।

5.   हिमवान (अम्बष्ठ) की कोई शाखा उपलब्ध नहीं है ।

स्कन्दपुराण एवं विष्णु पुराण से यह प्रमाणित होता है की भारतके पशिम में अम्ब नाम का एक जनपद भी था । बहुत संभव है की उसी स्थान का अधिवासी कायस्थ अम्बष्ठ नाम से ख्यात हुए ।

6.   चरुं (कर्ण या करण) की दो श्रेणिया है ( क ) गयावासी ( ख ) तिरहुतिया ये निवास के कारण हैं|

7.   चित्रचारू (निगम) की कोई शाखाएं उपलब्ध नहीं है । ऐसा कहा जाता है की कशी में वेदाध्ययन करने में संलग्न के कारण ये निगम कहलाये ।

8.   अतीन्द्रिय (कुलश्रेष्ठ) की दो श्रेणियां हैं (क) वरखेरा और (ख) चखेरा

9.   भानु (श्रीवास्तव) की दो शाखाएं है (क ) खर और (ख) दुसर । इसमे खर श्रेष्ठ एवं दुसर उनके सामने सम्मान में छोटे समझे जाते है ।

कुछ लोगों के अनुसार दो शाखाएं नहीं थी । सम्राट अकबर के समय इनकी दो श्रृष्टि हुई । एक व्यक्ति ने अतिघ्रिना से राजप्रदात उपहार को त्याग दिया । उनका नाम अखौरी धर्म परायण हुआ । वे मांस स्पर्श नहीं करते थे । अखौरी ही बाद में खर नाम से जाने-जाने लगे ।

10. विभानु(सूर्यध्वज) की कोई शाखा उपलब्ध नहीं है । इनका कहना है की रजा सुरसेन ने यज्ञ कल में विभाणु को साहाय्य करने से  सूर्यध्वज उपाधि दिया था । उनका आचार विचार कुछ कुछ ब्राह्मणों से मिलाता जुलता है ।

11. विर्यभानु (वाल्मीकि) की तीन शाखाएं है (क) बम्बैया (ख) कच्छी और (ग) सौराष्ट्री

12. विश्वभाणु (अष्ठाना) की दो शाखाएं हैं (क) पूर्वी और (ख) पश्चिमी । पूर्वी जौनपुर एवं उनके आस पास के निवासी रहे,जबकि पश्चिमी का निवास स्थान लखनऊ तथा उसके आस पास रहा ।

युक्त प्रदेशो के कायस्थों के कुलग्रंथ में वहां के प्रचलित "पतालखंड" के कथन में चित्रगुप्त पूजन पद्धति में गौड़ , माथुर, भटनागर सेनिक या शक्सें , अम्बष्ठ, श्रीवास्तव, अष्ठाना, कर्ण, सूर्यध्वज, वाल्मीकि, कुलश्रेष्ठ और निगम से बारह भेद चित्रगुप्तज कायस्थ के पाए जाते है । इन्ही बारह श्रेणियों के कायस्थों से इक्कीस प्रकार के कायस्थ हुए जो "पतालखंड" में लिखा है । वे इस प्रकार हैं :- (1) सूर्यध्वज(२) चन्द्रहास (३) शूरिचंद्रार्ध (४) चंद्रोह (५) रविदास (६) रविरत्न (७) रविधिर (८) रविपूजक (९) गंभीर (१०) प्रभु (११) बल्लभ (१२) उदारहास रवि (१३) मधुमान (१४) भट्ट (१५) सभट (१६)सम्भम (१७) पंचतत्वज्ञ (१८) श्री गौड़ (१९) राजधाना (२०) अनिन्द और (२१)विश्वास ।

उक्त पुस्तक के अनुसार इन इक्कीस श्रेणियों में हुए प्रत्येक के बीस-बीस भेद हैं |

 अगले प्रेषण में कुछ दिलचस्प तथ्यों के लिए इंतजार करें   :-
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