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Sri Sri 108 Chitragupt Jee Maharaj



कायस्थ की उत्पत्ति :-  हिन्दु धर्मशास्त्र के पुराण और वेद के अनुसार कायस्थ क़ा जन्म चित्रगुप्त महाराज से हुआ है। कायस्थ के बारे मे बहुत सारे तथ्य है। हिन्दु धर्मशास्त्र मे बहुत सी कहानीया है कायस्थ और कायस्थ परिवार् के बारे मे।



आईए ईश्वर और उनके ब्रहमान्ड के बारे मे इस कहानी का आरम्भ् करे :- 
 संक्षेप में ब्रह्मांड की उत्पत्ति की एक झलक:-
  • ईश्वर्:- सामान्य शब्दो मे मै अपना विचार् आपके समक्ष रखता हूँ । ईश्वर अदृश्य है किन्तु वे हमारी देख-रेख हमेशा करते रहते है और हमे मुशकिलो को दुर करने मे हमारी मदद करते है। ज़िन्हे हम कई नाम से स्मरण करते है जैसे ऱाम, रहीम्, अल्ला, वाहे गुरु ईश्वर इत्यादि। मेरी समझ से ईश्वर संक्षिप्तीकरण है , जन्म देनेवाला, पालन करनेवाला, और संहार करनेवाले का।

    इस ब्रहमाण्ड को रचने वाले ब्रह्मा जी, पालन करने वाले विष्णु जी, एवम संहारक  भोले शंकर है। जैसा की हमारा मानना है की इस ब्रहमाण्ड मे 56,000,000 देवी और देवता है। हिन्दु धर्म के अनुसार हम विश्वास करते है की इस ब्रहमाण्ड को रचने वाले भगवान् ब्रह्मा है । उन्होने अपने शरीर के विभिन्न भागो से 16 पुत्रो को अवतरित् किया ।

    पुराण और वेदो के अनुसार सभी देवि देवता क अवतार समुद्र मन्थन के समय हुआ|

    भगवान ब्रह्मा ने सभी देवि देवताओ को उनके कार्य के अनुसार उनमे दैविय शक्तियो का वितरण् किया। एक दिन भगवान ब्रहमा जी को लगा होगा कि इस ब्रहमाण्ड मे कुछ कमी सी है अतः उन्होने धरती पर  जिव जन्तुओ का निर्माण किया होगा जिसमे मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणि होगा। वेदो और पुराणो के अनुसार ब्रह्मा जी ने चार वर्ण बनाया ब्राहमण्, क्षत्रिय, वैश्य एवँ शुद्र। और सभी वर्णो को ऊन्होने उनका कार्य भार दिया होगा ।
 क़ायस्थ का जन्म और यमराज के सहायक बनने कि कथा :-

मृत्यु के देवता यमराज ने ब्रह्मा जी से आग्रह किया कि धरती के प्राणियो कि पाप पुण्य का न्यायसंगत लेखा-जोखा रखने के लिये उनको एक सहायक की आवश्यकता है। फिर् ब्रह्मा जी ने सोचा होगा कि सभी देवताओ को तो मैने उनको उनके अनुसार कार्य सौप दिय है अत: अब यमराज कि समस्या का समाधान तो निकालना ही होगा सो वह् उनके सहायक कि तालाश मे तपस्या मे लिन हो गये ।
ग्यारह हजार वर्शो कि तपस्या के पश्चात् उनकी काया (शरीर्) से चित्रगुप्त जी अवतरित हुए | चित्रगुप्त जी ने ब्रह्मा जी को प्रणाम करके पुछा कि अब मेरे लिये क्या आदेश है । इर ब्रह्मा जी ने  अपनी आखे खोलकर देखा कोई उनके सामने दोनो हाथो मे कलम और स्याहि तथा उनके कमर मे तलवार लतक रही है। तब ब्रह्मा जी ने पुछा आप कहान से और किस कारण वश मेरे सामने प्रकट् हुए है।


 तब चित्रगुप्त जी ने कह तात मेरा जन्म आपकी काया से हुआ है। तब परम पिता ब्रह्मा जी ने कहा जैसा कि तुम्हारा जन्म मेरि काया से हुआ है अतः तुम्हारा वंशज कायस्थ के रूप में जाना जाएगा।
चुकि आप मेरे मन की कल्पना एवम गुप्त रुप से प्रकट् हुए है अतः आपको चित्रगुप्त नाम से जाना जायेगा | तब ब्रह्मा जी ने उनको उनके नाम चित्रगुप्त से बुलाया और कहा की जो पाप पुण्य करता है उनको न्यायसंगत रुप से उनका लेखा जोखा रखने मे यमराज कि सहायता करो।

  
 
          अरे बेटे मेरे सभी अच्छे गुणो को अपनाकर तुम धर्मराज् के राज्य मे रहकर पुण्य और पाप का लेखा जोखा रखने के लिये तैनात रहेंगे । .धार्मिक कर्तव्यों क्षत्रिय जाति के लिए निर्धारित नियम के अनुसार पालन किया जाना है। चित्रगुप्त भगवान ब्रह्मा के 17 निर्माण है.

कुछ ग्रन्थ् के अनुसार् यह कायस्थ की उत्पत्ति के बारे में एक सच्ची कहानी है, भविश्य पुराण्, ग़रुड पूराण्, स्कन्द पुराण्, देवी पुराण , कमलकर भट्ट द्वारा लिखित् ब्रिहत्ब्रहम खंड | कायस्थ पारंपरिक लेखक जाति के सदस्यों में चिह्नित है | हिन्दु धर्म शास्त्र पुराण और वेद् के अनुसार कायस्थ राजा चित्रगुप्त से अवतिर्ण हुए है। ज़िनका मुख्य कार्य मानवता के कर्मो का अभिलेख रखना, न्याय और कानून के शासन को कायम रखना, और न्याय करना कि मनुश्य मृत्यु के बाद नर्क जायेगा या फिर् स्वर्ग्।

चित्रगुप्त परिवार और उनके वन्शज्:-
     
भविष्य पुराण्, पदम पुराण इत्यादि के अनुसार ब्राहमण भगवान चित्रगुप्त कि पुजा किया करते थे। ऎक समय ऋषि धर्म शर्मा भगवान ब्रह्मा के पास अपनी पुत्रि का विवाह चित्रगुप्त से करने का प्रस्ताव लेकर् गये। उसी प्रकार भगवान के पुत्र मनु अपनी पुत्रि सुदाक्षिना के विवाह चित्रगुप्त से करने  को लेकर ब्रहमा जी के पास लेकर गये। भगवान ब्रह्मा ने दोनो के प्रस्ताव को स्वीकार किया तथा दोनो कि शादि चित्रगुप्त से हो गयी।

महाराज चित्रगुप्त को ऋषि धर्म शर्मा कि पुत्रि इरावती से आठ पुत्र हुए तथा भगवान श्राध्यदेव कि पुत्रि सुदाक्षिना से चार पुत्र हुए । यहाँ से कायस्थ महापरिवार की नीब परी |